Friends कछुआ और खरगोश की कहानी हम बचपन से सुनते आ रहे हैँ। लेकिन आज हम

आपके सामनेँ इस कहानी का नया और Latest edition रख रहे हैँ। इसलिये

Please इस Story को ध्यान से पढ़ेँ और इसकी हर शिक्षा भरी बातोँ को Notice

करेँ।

* कछुआ और खरगोश मेँ एक दिन दौड़ की प्रतियोगिता हूई। खरगोश नेँ मन ही मन

सोँचा कि ये सुस्त और धीमा चाल चलनेँ वाला कछुआ क्या दौड़ेगा, उसनेँ सोचा

आखिरकार विजेता तो मैँ ही बनुँगा। खरगोश पुरे आत्मविश्वास के साथ दौड़ा और

आधे रास्ते मेँ एक पेड़ के नीचे सो गया। कछुआ धीरे-धीरे चलकर ही अपनी

मंजिल पर पहूँच गया। और कछुआ विजेता बन गया।

यह है पुराना संस्करण।

शिक्षा- (1.) वही जीतता है जो अपनेँ कार्य के प्रति सजग होता है ,पुर्ण

समर्पण भावना से कार्य करता है।

(2.) हमेशा कछुए की तरह भले ही धीरे चलेँ क्योँकि ये बात मायनेँ नहीँ

रखती कि आप कितना धीमेँ चल रहे हैँ जबतक कि आप रूके ना। इसलिये चलते

जाइये मंजिल आपके इंतजार मेँ है।

(3.) किसी को कमजोर न समझेँ क्योँकि यही कमजोर एक दिन आपसे भी आगे जा सकते हैँ।

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New Edition-

*एक दिन जंगल मेँ खरगोश अपनेँ पुरे झुंड के साथ खेल रहे थे और वहाँ से

कछुआ गुजरा। खरगोश नेँ अपमान का बदला लेनेँ की पुरी ठान ली थी, खरगोश नेँ

कछुए को एक बार फिर ललकारा कि चलो एक और दौड़ हो जाये, लेकिन कछुए नेँ

दौड़ने से मना कर दिया क्योँकि कछुआ बुद्दिमान था।

शिक्षा- (4.) आपसे ज्यादा गुणवान यदि हार जाये तो घमण्ड कभी न करेँ

क्योँकि किस्मत हमेशा साथ नहीँ देती और सामनेँ वाला हर बार त्रुटि नहीँ

करेगा।

(5.) अवसर का भरपुर फायदा उठायेँ नहीँ तो खरगोश की तरह दुसरी अवसर का

इंतजार करते रह जायेँगे।

*खरगोश लोगोँ नेँ हार नहीँ मानी और जंगल मेँ सभी जानवरोँ की पंचायत सभा

बुलाई। और कछुए को दौड़ के लिये मजबुर कर दिया और पंचायत नेँ भी खरगोश का

समर्थन किया। लेकिन इस बीच बुध्दिमान कछुए नेँ एक शर्त रखी कि वो दौड़ का

रास्ता खुद तय करेगा। सबनेँ उसकी इस शर्त को स्वीकार लिया।

दौड़ शुरू हूई, खरगोश नेँ सोचा कि मार्ग तय कर लेनेँ से क्या हो जायेगा,

आखिरकार मेरी दौड़नेँ की गति ही तो काम आयेगी। खरगोश नेँ ठान लिया था कि

इस बार चाहे जो हो जाये वो रास्ते मेँ नहीँ रूकेगा। कछुआ धीरे धीरे चलता

गया और खरगोश पुरे तेज रप्तार से दौड़ते चला गया। दौड़ते दौड़ते, अचानक

खरगोश के होश ही उड़ गये जब उसके सामनेँ पानी का बहूत बड़ा नाला दिखाई

दिया। खरगोश नेँ कभी भी नहीँ सोचा था कि कछुआ इतनी बुद्दिमानी भरी चाल भी

चल सकता है। खरगोश के मुँह से शब्द भी नहीँ निकल रहे थे और वो बेचारा

नाले के किनारे बैठ गया।

शिक्षा- (6.) कभी भी सामनेँ वाले को मुर्ख न समझेँ क्योँकि आप सोँच सकते

हैँ तो वो आपसे ऊँचा सोँच सकता है।

(7.) सामनेँ वाले को हरानेँ के लिये कभी न खेलेँ बल्कि जीतनेँ के लिये आगे आयेँ।

* खरगोश को नाले के पास बैठे देखकर कछुआ मुस्कुराया क्योँकि उसे तो तैरना

नहीँ आता था। खरगोश, कछुऐ से नजरे भी नहीँ मिला पा रहा था। अचानक वहाँ पर

शेर दहाड़ते हूये पहूँचा और दोनोँ से शेर नेँ कहा कि तुम्हारी कहानियाँ

बच्चे बहूत पसंद करते हैँ, कई किताबोँ मेँ छापी जाती हैँ यदि तुम मुझे भी

इस कहानी मेँ शामिल कर लो तो मैँ तुम्हेँ नहीँ खाऊँगा इसलिये मेरे साथ भी

एक दौड़ लगाओ या मेरा भोजन बन जाओ।

कछुए और खरगोश दोनोँ नेँ सोँचा कि बिना दौड़े मर जायेँगे इससे अच्छा दौड़

लगायेँ और जीतनेँ का प्रयास करेँ। लेकिन कछुए नेँ एक शर्त और रख दी कि

मार्ग वही तय करेँगे।

आखिरकार दौड़ शुरू हूई, कछुआ खरगोश की पीठ मेँ बैठ गया और खरगोश दौड़नेँ

लगा। शेर भी दौड़ रहा था लेकिन जब उसनेँ सामनेँ नदी पाया तो वह चौँक गया।

खरगोश नदी तक कछुए को बिठाये ले गया और नदी पर पहूँचकर खरगोश कछुए की पीठ

पर चढ़ गया और दोनोँ नेँ नदी पार कर ली और शेर सिर पकड़कर बैठ गया क्योँकि

तैरना तो उसे आता नहीँ था।

शिक्षा- (8.) जब मुसीबत मेँ होँ तो हार कभी न मानेँ क्योँकि हार मानकर

बैठनेँ से अच्छा आखिरदम तक प्रयास करना क्योँकि कब जानेँ पासा पलट जाये।

(9.) सामनेँ वाला ताकतवर, बड़ा या तेज होनेँ का मतलब यह नहीँ है कि वही जीतेगा।

(10.) यदि आपके अंदर की कमी सामनेँ वाले की खुबी हो और आपकी खुबी दुसरे

की कमी हो तो इससे अच्छा टीम वाली जोड़ी नहीँ हो सकती।

(11.) जब सामनेँ वाला शक्तिशाली हो तब टीम बनाकर ही उसका मुकाबला करेँ।

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