गुरू ज्ञानेश्वर का आश्रम उनके जमाने में बहुत प्रसिद्ध था। उनके यहाँ हजारों छात्र विद्या अध्ययन के लिए आया करते थे। गुरू जी ने एक सुबह देखा कि उनके कुछ शिष्यों में एक-दूसरे के लिए ईर्ष्या का स्वभाव झलक रहा है। उन्होंने अपने शिष्यों को अपने पास बुलवाया और उन्हें आदेश देते हुए कहा- “शिष्यों कल प्रवचन के समय तक आप सभी अपने साथ बड़े-बड़े आलू की सब्जी लेकर आएंगे और अपने सभी आलुओं में उन व्यक्तियों का नाम लिखेंगे जिनसे आप ईर्ष्या करते हों।
अगली सुबह प्रवचन के समय सभी के हाथों में आलू की सब्जी थी, किसी के हाथों में पांच तो किसी के हाथों में छह आलू और सभी में ईर्ष्या करने वाले व्यक्तियों के नाम थे।
गुरू ने कहा- “शिष्यों ये सब आलू, आप स्वयं को सात दिनों तक के लिए भेंट करें, आप जहाँ भी जाएँ ये आलू आपके साथ होने चाहिए, इसलिए खाते-पीते, सोते-जागते हर समय ये सब्जी आपके साथ रहनी चाहिए।”
सभी शिष्य, गुरूजी के इस बात से चकित थे, लेकिन गुरू का आदेश तो उन्हें मानना ही था। वे अब जहाँ भी जाते आलू को हमेशा साथ रखते थे। लेकिन तीन से चार दिनों के बाद आलू से सड़ने की बदबू आने लगी, सभी उस बदबू से बहुत परेशान थे और सात दिन बीतने का इंतजार कर रहे थे। जैसे ही सात दिन की अवधि समाप्त हुई सभी अपने गुरू के पास गए और आलू के ईर्ष्या वाले पाठ का सार समझाने को कहा।
गुरू ने शिष्यों को समझाते हुए कहा- शिष्यों, जब सात दिन में ही इन आलू से बदबू आनी शुरू हो गयी है और आपको ये बोझ लगने लगी हैं। अब जरा यह सोचिये कि आप, अपने जिन मित्रों से, जिन व्यक्तियों से ईर्ष्या करते हैं, उनका कितना बड़ा बोझ आपके मन पर रहता होगा। ईर्ष्या आपके मन पर अनावश्यक बोझ डालती है, जिसके कारण ही आलूओं की तरह आपके मन से भी बदबू आनी शुरू हो जाती है। हमेशा मन में एक बात गाँठ बांध लो यदि ‘तुम किसी से प्रेम नहीं कर सकते, प्यार नहीं बाँट सकते तो नफरत या ईर्ष्या भी मत करना। यही वो सबसे बड़ा कारण है जिससे आपका मन हमेशा खुश, स्वेच्छ और हल्का होगा।’
सारे शिष्य, गुरू की बातें बहुत ही अच्छी तरह से सुन रहे थे और उन्होंने बदबूदार आलुओं को फेंकते हुए अपने मन से ईर्ष्या को भी हमेशा के लिए निकाल फेंका।