चीन में एक बहुत ही प्रसिध्द और महान दार्शनिक हुए जिनका नाम है- कन्फ्यूशियस।
कन्फ्यूशियस एक बार उनके शिष्यों के साथ सैर पर निकले, आधे रास्ते पर पहुँचते ही कुछ शिष्यों ने जिज्ञासावश पूछा- गुरुदेव! बहुत दिनों से हमारे मन में एक प्रश्न था, आज आपसे पूछना चाहते हैं! कृपया हमें यह बताएं कि किसकी प्रार्थनाएं सही मायने में सच्ची होती हैं?
कन्फ्यूशियस ने तुरंत जवाब देते हुए कहा- “मेरी नजर में लिंची ही एक सच्चा साधक है जिसकी प्रार्थनाएं भगवान रोज सुनते हैं। ”
सभी शिष्यों के मन में लिंची का नाम सुनते ही उनसे मिलने की इच्छा और उत्सुकता हुई . अगले ही सुबह कुछ शिष्य लिंची से मिलने उसके गांव के लिए निकल पड़े। जब उन्होंने देखा कि लिंची एक साधारण-सा किसान है तो शिष्यों के मन में थोड़ी आशंका हुई लेकिन कन्फ्यूशियस के शिष्यों को तो प्रार्थना के मंत्र ही चाहिए थे। इसी उद्देश्य से सभी शिष्य लिंची के पास बैठे रहे और उस घडी का इंतजार करते रहे कि कब वो प्रार्थना करेंगे तो उसे हम लिख लेंगे और उसका आगे अभ्यास करेंगे। सुबह होते ही लिंची अपने खेत पर पहुंचा और ऊपर आसमान की तरफ मुंह करके बोला – “हे भगवान! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कि आपने मुझे इतना अच्छा जीवन दिया है। इस सृष्टि में सब कुछ कितना अच्छा है . आपने मुझे इंसान के रूप में जन्म देकर मेरे ऊपर बहुत बड़ा उपकार किया है, प्रभु मैं हमेशा आपका ऋणी रहूँगा।”
और इतना कहते हुए लिंची अपने खेत में काम करने लगा .
जब उसने दिन भर कोई प्रार्थना नहीं की तो शिष्य निराश होकर अपने गुरु कन्फूशियस के पास लौट गए और सभी ने बोला- “गुरुजी! आपने हमें किस इंसान के पास भेज दिया था, लिंची ने तो बस एक ही वाक्य प्रार्थना के लिए इस्तेमाल किया और न तो उसने पूजा-अर्चना की और न ही किसी प्रकार का बड़ा पाठ किया।”
कन्फ्यूशियस मुस्कुराते हुए बोले- “बच्चों! जब किसी व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन ही एक प्रार्थना बन जाता है तो उसे किसी प्रकार का बाहरी दिखावा करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। सच्ची प्रार्थना तो मनुष्य के अंदर जन्म लेती है और वह मनुष्य के विवेक पर प्रकाश डालती है और आगे वही ऊपर वाले भगवान, ईश्वर या कहें परमात्मा तक पहुँचती है।
मित्रों, हमारे ईश्वर, प्रार्थना के नहीं बल्कि प्रेम के भूखे हैं . उनके लिए हमारे मुंह से निकले प्रेम के दो शब्द भी उन्हें प्रिय हैं. किसी प्रकार का ढोंग जब हमारे अंतर्मन को बहुत ख़राब लगता है तो वह उस ईश्वर को कितना ख़राब लगता होगा जिसने हमें बनाया है। उसे बड़े-बड़े मन्त्रों, पूजा पाठ, उपवास व्रत की आवश्यकता नहीं। उन्हें तो बस प्रेम चाहिए क्योंकि यह उनकी सच्ची भक्ति और सच्चे प्रार्थना का प्रमाण है। इसलिए दिन में बस एक बार उस ऊपरवाले को अपने अनमोल जीवन के लिए धन्यवाद जरूर कहिये और बस अपना कर्म करते जाइये क्योंकि अंतर्मन से निकला एक छोटा-सा शब्द भी सच्ची प्रार्थना है।
धन्यवाद !