कर्म क्या है ? गौतम बुद्ध की कहानी

कर्म क्या है ? गौतम बुद्ध की कहानी

एक बार गौतम बुद्ध से उनके एक शिष्य ने पूछा, गुरूजी कृपया हमें बताएं कि कर्म क्या है? गौतम बुद्ध ने अपने शिष्य से कहा, कि कर्म को समझने के लिए मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ। इस कहानी से तुम समझ जाओगे कि कर्म क्या है।

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बुलंदशहर का राजा, घोड़े पर बैठकर अपने राज्य का भ्रमण कर रहा था, चारों तरफ भ्रमण करने के बाद वह एक दूकान के सामने आकर रुक गया। रुकने के बाद राजा ने अपने मंत्री से कहा कि मंत्री जी मालुम नहीं क्यों लेकिन लगता है कि इस दुकानदार के लिए कल ही फांसी की सजा सुना दूँ, इसे मृत्युदंड दे दूँ। मंत्री राजा से इसका कारण पूछ पाते इससे पहले राजा आगे बढ़ गए। मंत्री ने इस बात का कारण पता करने के लिए अगली सुबह भेस बदली और आम जनता का रूप लेकर दुकानदार के पास जा पहुंचा। दुकानदार चंदन की लकड़ी बेचने का काम किया करता था। मंत्री ने दुकानदार से पुछा कि उसका काम कैसे चल रहा है! तब दुकानदार ने बताया कि उसका बहुत बुरा हाल है, लोग उसके दूकान पर आते हैं, चंदन को सूंघकर उसकी प्रशंसा करते हैं लेकिन खरीदता कोई नहीं! मैं सिर्फ इसी इंतजार में बैठा हूँ कि कब हमारे राज्य के राजा की मृत्यु हो और उनके अंत्येष्टि में मुझसे बहुत सारे चंदन की लकड़ी खरीदी जाएगी और शायद वहां से मेरे व्यापार में बढ़ोत्तरी होनी शुरू हो जाए। मंत्री को सारी बात समझ आ गयी, कि यही वह नकारात्मक विचार है जिसने राजा के मन को भी नकारात्मक किया। वह मंत्री बहुत बुद्धिमान था, उसनें सोचा कि मैं आपसे थोड़ी चंदन की लकड़ियाँ खरीदना चाहता हूँ। यह सुनकर दुकानदार भी खुश हुआ और उसनें सोचा कि चलो कुछ तो बिका। उसनें चंदन की लकड़ी को कागज़ से लपेटा और अच्छी तरह पैकिंग करके वह लकड़ी मंत्री को दी। मंत्री अगली सुबह चंदन की लकड़ी लेकर राजा के दरबार में पहुँचे और राजा से कहा, कि महाराज वह जो दुकानदार है उसनें आपके लिए तौफे के रूप में चंदन की लकड़ी भेजी है। यह सुनते ही राजा बहुत खुश हुए और मन ही मन सोचने लगे कि मैं बेकार में उस दुकानकार के बारे में गलत बातें सोचा करता था। उसनें चंदन की लकड़ी को हाथ में लिया, उसमें बहुत ही अच्छी सुगंध आ रही थी। राजा इससे बहुत ही खुश हुए और उसनें दुकानदार के लिए मंत्री के हाथों सोने के सिक्के भिजवाए। उसी आम जनता का रूप लेकर मंत्री अगले दिन सोने के सिक्के के साथ दुकानदार के पास पहुंचा। दुकानदार बहुत खुश हुआ और उसनें सोचा कि मैं राजा के लिए कितनी गलत बातें सोचा करता था, राजा तो बड़े ही दयालु हैं।

ये कहानी जब ख़त्म हुई तब गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों से पुछा कि अब आप बताएं कि कर्म क्या है? शिष्यों ने उत्तर देते हुए कहा, कि शब्द ही हमारे कर्म हैं। हम जो काम कर रहे हैं वही हमारे कर्म हैं, जो हमारी भावनाएं हैं वही हमारे कर्म हैं। गौतम बुद्ध ने सभी शिष्यों के जवाब सुनने के बाद कहा- आपके विचार ही आपके कर्म हैं। अगर आपने अपने विचारों पर नियन्त्रण करना सीख लिया तब आप महान बन जाते हैं। जब आप अच्छा सोचते हैं तब आपके साथ अच्छा होता भी है।

आपके विचार ही आपको अच्छा या बुरा बनाते हैं।

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धन्यवाद 🙂

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