बेटे की मूर्तियां – Inspirational Story in Hindi

Inspirational Story in Hindi

एक गांव में एक मूर्तिकार रहा करता था। वह काफी खूबसूरत मूर्तियां बनाया करता था। और इस काम से बहुत अच्छा कमा भी लेता था।

उसे एक बेटा हुआ। उस बच्चे ने बचपन से ही अपने पिता के पास मूर्तियां बनानी शुरू कर दी। धीरे-धीरे उसने मूर्तियां बनाना सीख लिया। अब वह बहुत अच्छी मूर्तियां बनाया करता था और पिता  अपने बेटे की कामयाबी पर बहुत खुश था और गर्व महसूस करता था। लेकिन जब भी वह मूर्तियां बनाता, हर बार बेटे की मूर्तियों में कोई ना कोई कमी निकाल दिया करता था।

वह कहता था – “बहुत अच्छा किया है बेटा, लेकिन अगली बार इस कमी को दूर करने की कोशिश करना।”

बेटा भी कोई शिकायत नहीं करता। वह अपने पिता की सलाह पर अमल करते हुए अपनी मूर्तियों को और बेहतर करता रहता।

इस लगातार सुधार से बेटे की मूर्तियां अपने पिता से भी अच्छी बनने लगी और ऐसा समय भी आ गया कि लोग बेटे की मूर्तियों को बहुत पैसा देकर खरीदने लगे। जबकिउसके पिता की मूर्तियां पहली वाली कीमत पर ही बिकती रहीं।

पिता अभी भी बेटे की मूर्तियों में कमियां निकाल ही देता था। लेकिन बेटे को अब यह अच्छा नहीं लगता कि कोई उसकी मूर्तियों पर कमियां निकाले। और वह बिना मन के कमियों को स्वीकार करता था। लेकिन फिर भी अपनी मूर्तियों में सुधार कर ही देता था।

एक दिन ऐसा भी आया कि जब बेटे के सब्र ने जवाब दे दिया। पिता इस बार जब कमियां निकाल रहा था तो बेटा बोला – आप तो ऐसे कहते हैं कि जैसे आप बहुत बड़े मूर्तिकार हो। अगर आपको इतनी समझ होती तो आप की मूर्तियां इतनी कम दाम में नहीं बिकती। मुझे नहीं लगता कि अब आपके सलाह  कि मुझे जरूरत है। मेरी मूर्तियां बिल्कुल ठीक है।

पिता ने जब बेटे की यह बात सुनी तो उसने अपने बेटे को सलाह देना और उसकी मूर्तियों में कमियां निकालना बंद कर दिया।

कुछ महीने तो वह लड़का खुश रहा। लेकिन फिर उसने यह महसूस किया कि लोग अब उसकी मूर्तियों की इतनी तारीफ नहीं किया करते हैं जितनी पहले किया करते थे। और उसके मूर्तियों के दाम बढ़ना भी बंद हो गए और उसकी बिक्री बहुत कम होने लगी।

शुरू में तो बेटे को कुछ समझ नहीं आया। लेकिन फिर वह अपने पिताजी के पास गया और उनसे इस समस्या के बारे में सारी बात बताई। उसके पिताजी ने बेटे की बातों को  बहुत शांति से सुना जैसे कि उन्हें पहले से पता था कि एक दिन इस प्रकार का सिचुएशन आएगा।

बेटे ने भी इस बात को नोटिस किया और पूछा – क्या आप जानते थे कि ऐसा होने वाला है!

पिता ने हां मे उत्तर दिया और बोला आज से कई साल पहले मैं भी इस हालात से टकराया था।

बेटे ने सवाल किया – तो फिर आपने मुझे समझाया क्यों नहीं?

पिताजी ने जवाब दिया – क्योंकि तुम समझना नहीं चाहते थे। मैं जानता हूं कि तुम्हारी जितनी अच्छी मूर्तियां मैं नहीं बनाता हूँ। यह भी हो सकती है कि मूर्तियों के बारे में मेरी सलाह गलत हो। ऐसा भी नहीं है कि मेरी सलाह की वजह से कभी तुम्हारी मूर्ति बेहतर बनी हो। लेकिन जब मैं तुम्हारी मूर्तियों में कमियां दिखाता था, तब तुम अपनी बनाई मूर्तियों से संतुष्ट नहीं होते थे और खुद को बेहतर करने की कोशिश करते थे। और वही बेहतर होने की कोशिश ही तुम्हारे कामयाब होने  का एक बड़ा कारण था। लेकिन जिस दिन तुम अपने काम से संतुष्ट हो गए और तुमने यह भी मान लिया कि अब इसमें और बेहतर होने की कोई गुंजाइश ही नहीं है तब तुम्हारी कामयाबी रुक गई। लोग हमेशा तुमसे बेहतर की उम्मीद रखते हैं। और यही कारण है कि अब तुम्हारी मूर्तियों के लिए तुम्हारी तारीफ नहीं होती है और ना ही उनके लिए तुम्हें ज्यादा पैसे मिलते हैं।

बेटा थोड़ी देर चुप रहा। और फिर उसने सवाल किया – तो अब मुझे क्या करना चाहिए। पिता ने एक वाक्य में जवाब दिया – असंतुष्ट होना सीख लो। मान लो कि तुम में हमेशा बेहतर होने की गुंजाइश बाकी है। यही एक बात तुम्हें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहेगी। तुम्हें हमेशा बेहतर बनाते रहेगी।

कहानी का सार दिन के उजाले की तरह साफ़ है, इस संसार मे कोई भी इंसान किसी भी काम में 100% उत्तम नही है। हर इंसान मे कुछ न कुछ कमी जरूर है। हमें इस कमी को अपने अंदर तलाश करनी चाहिये और इसे बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिये। और इस कमी को तलाश करने के लिए हमें असंतुष्ट होना सीखना होगा। तभी जाकर हम अपने जीवन मे आगे बढ़ सकते हैं।

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धन्यवाद!

 

 

 

 

 

 

 

Afzal Imam (अफजल इमाम)

Blog – Hi-Tech Education waves

मै (अफजल इमाम) एक student और part time ब्लॉगर हुँ। मेरे ब्लॉग का नाम “Hi-Tech Education waves” है। इसमें आप education, career और finance से संबंधित विभिन्न विषयों पर विस्तृत जानकारी हिंदी मे पा सकते हैं।


 

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